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हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करना अदालत का काम नहीं: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने की मांग की थी। इसी याचिका की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि धार्मिक व भाषा के आधार पर राज्यों के स्थर पर अल्पसंख्यक का दर्जा दिया जाना चाहिए। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जिला स्तर पर धार्मिक व भाषा के आधार पर अल्पसंख्यक की पहचान करने के लिए याचिका कि सुनवाई करना मुश्किल है, इसलिए यह काम जिला स्तर पर नहीं होना चाहिए।

न्यायमूर्ति उदय यू ललित व न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट की पीठ ने याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि उन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करना अदालत का काम नहीं है, जहां उनकी संख्या अन्य समुदायों से अधिक है, यह न्यायिक क्षेत्र से बाहर है।

अल्पसंख्यक घोषित करना अदालत का काम नहीं
पीठ ने याचिकाकर्ता देवकीनंदन ठाकुर के वकील से कहा कि किसी भी समुदाय को अल्पसंख्यक घोषित करना अदालत का काम नहीं है। जब तक आप हमें उनके अधिकारों से वंचित करने के बारे में कुछ ठोस सबूत नहीं दिखाते हैं तब तक हम हमारे द्वारा हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित की सामान्य घोषणा नहीं की जा सकती है।

कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने याचिका के माध्यम से क्या की थी मांग

कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर ने याचिका के माध्यम से 9 राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित करने की मांग की थी, जिसमें उन्होंने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अधिनियम 1992 की धारा -2C की वैधता को चुनौती दी थी। याचिका के माध्यम से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि लद्दाख में केवल 1%, मिजोरम में 2.75%, लक्षद्वीप में 2.77%, कश्मीर में 4% , नगालैंड में 8.74%, मेघालय में 11.52%, अरुणाचल प्रदेश में 29%, पंजाब में 38.49% और मणिपुर में 41.29% हिंदू ही हैं। इसके बाद भी इन राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक घोषित नहीं किया गया है।

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम 1992
कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर की ओर से यह याचिका जून में दायर की गई थी, जिसमें राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग (NCM) अधिनियम 1992 व NCM शैक्षिक संस्थान (NCMEI) अधिनियम 2004 के प्रावधान को चुनौती दी गई थी, जो अल्पसंख्यकों के लिए उपलब्ध कुछ लाभों व अधिकारों को प्रतिबंधित करता है।

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