Trending Nowदेश दुनियाशहर एवं राज्य

POPULATION CONTROL BILL : मोदी सरकार लाएंगी जनसंख्या नियंत्रण कानून, केंद्रीय मंत्री का बड़ा बयान

Modi government will bring population control law, Union minister’s big statement

नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने मंगलवार को कहा कि जनसंख्या नियंत्रण के लिए जल्द ही कानून लाया जाएगा। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री ने जनसंख्या नियंत्रण पर एक कानून के बारे में पूछे जाने पर यह बात कही।

उन्होंने कहा, “जल्द ही इसे लाया जाएगा, चिंता मत करो। जब इस तरह के मजबूत और बड़े फैसले लिए गए हैं, तो बाकी भी लिए जाएंगे।” आपको बता दें कि वह गरीब कल्याण सम्मेलन में भाग लेने के लिए रायपुर पहुंचे थे।

इसलिए दिलचस्प है पटेल का दावा

केंद्रीय मंत्री पटेल का दावा दिलचस्प इसलिए है क्योंकि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया ने हाल ही में संसद में कहा था कि सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण हासिल करने के लिए जागरूकता और स्वास्थ्य अभियानों का सफलतापूर्वक इस्तेमाल किया था और कानून की कोई आवश्यकता नहीं है।

मंडाविया ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा, “यह इंगित करता है कि जनसंख्या नियंत्रण पर सरकार की नीतियां बल प्रयोग के बिना हैं। इसे अनिवार्य बनाकर और जागरूकता के माध्यम से काम कर रहे हैं।” विपक्षी दलों के कई सांसदों ने भी विधेयक का विरोध किया था।

अब तक कानून बनाने में विफल रहीं सरकारें

हालांकि, सांसदों सहित भाजपा नेता समय-समय पर जनसंख्या को विनियमित करने के लिए एक कानून पर जोर देते रहे हैं। जनसंख्या नियंत्रण विधेयक पर काफी संसदीय बहस छिड़ी हुई है। आपको बता दें कि आजादी के बाद से अब तक 35 से अधिक बार दो बच्चों की नीति संसद में पेश की जा चुकी है, लेकिन यह कानून बनने में विफल रही है।

बता दें कि जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर एक बार फिर चर्चा हो रही है। एक बड़े वर्ग की मांग है कि भारत में तेजी से बढ़ती आबादी पर रोक लगाने के लिए जनसंख्या नियंत्रण कानून जरूरी है और इसके लिए बिल भी तैयार हुआ है। हाल ही में केंद्रीय मंत्री प्रहलाद पटेल के एक बयान के बाद इसकी चर्चा ज्यादा हो गई है, जिसमें कहा गया था कि जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए एक कानून जल्द ही लाया जाएगा।

लागू हुआ तो किन-किन नियमों में बदलाव होगा…?

ऐसे में सवाल है कि अगर जनसंख्या कानून आता है तो किन-किन नियमों में बदलाव होगा…? तो हम आपको इस बिल को लेकर पहले की गई सिफारिशों और ड्राफ्ट के आधार पर जानते हैं कि अगर ये जनसंख्या कानून आ जाता है तो किस तरह के बदलाव होंगे। इस बिल में क्या सिफारिशें की गई हैं और किन लोगों को इससे मुश्किल हो सकती है।

राजनीति में सक्रियता हो जाएगी खत्म

अगर पॉपुलेशन कंट्रोल बिल, 2021 के हिसाब से देखें तो इसमें सिफारिश की गई है कि जिन माता-पिता को 2 से ज्यादा बच्चे हैं, उनसे कई प्रकार की सुविधाएं वापस ले लेनी चाहिए या नहीं दी जानी चाहिए। इसके अलावा ये भी कहा गया है कि ऐसे परिवार के सदस्य को लोकसभा, विधानसभा या पंचायत चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिले। इतना ही नहीं, दो से ज्यादा बच्चे वाले परिवार को राज्यसभा, विधान परिषद् और इस तरह की संस्थाओं में निर्वाचित या मनोनित होने से रोका जाना चाहिए। वहीं, दो से ज्यादा बच्चे वाले परिवार के लोगों को कोई राजनीतिक दल नहीं बनाने का नियम बनाना चाहिए। साथ ही सिफारिश है कि ऐसे परिवार के सदस्य किसी पार्टी के पदाधिकारी भी नहीं बन पाएंगे।

नौकरी में होगी मुश्किल

अगर सिफारिशों को मान लिया जाए तो दो से ज्यादा बच्चे होने पर केंद्र सरकार की कैटगरी ए से डी तक में नौकरी के लिए अप्लाई नहीं कर सकेंगे और निजी नौकरियों में भी ए से डी तक की कैटगरी में आवेदन नहीं कर पाएंगे।

सरकारी सुविधाएं नहीं ले पाएंगे

इसके अलावा सिफारिश ये भी है कि दो से ज्यादा बच्चे वाले व्यक्तियों को मुफ्त भोजन, मुफ्त बिजली और मुफ्त पानी जैसी सब्सिडी नहीं मिलनी चाहिए, साथ ही ये परिवार बैंक या किसी भी अन्य वित्तीय संस्थाओं से लोन लेने में भी इन लोगों को मुश्किल होगी। इसके अलावा किसी भी इनसेंटिव स्टाइपेंड या कोई वित्तीय लाभ नहीं मिलना चाहिए।

यूपी में क्या है फाइनल ड्राफ्ट?

बता दें कि पिछले साल जनसंख्या कानून का फाइनल ड्राफ्ट सीएम योगी आदित्यनाथ को सौंपा गया था, उस वक्त कानून कैसा होना चाहिए, इसको लेकर 8,500 से ज्यादा सुझाव आए थे, जिसमें से 8,200 सुझावों को बिल में शामिल किया गया है। इन सुझावों के अनुसार, जिनके एक बच्चा होगा, उन्हें प्रोत्साहित किया जाएगा और दो से ज्यादा बच्चे वाले लोगों को कई सुविधाओं से वंचित कर दिया जाएगा। इसके अलावा अगर किसी को जुड़वा बच्चा होता है, दिव्यांग होता है या ट्रांसजेंडर होता है तो उसे टू-चाइल्ड नॉर्म्स का उल्लंघन नहीं माना जाएगा।

रिपोर्ट्स के अनुसार, इस ड्राफ्ट में सुझाव दिए गए थे कि जिनके दो बच्चे होंगे, उन्हें ग्रीन कार्ड दिया जाएगा और जिनका एक बच्चा होगा, उन्हें गोल्ड कार्ड दिया जाएगा। कार्ड के आधार पर ही उन्हें सरकार की ओर से अतिरिक्त सुविधाएं दी जाएंगी।

‘जबरन’ नहीं लाया जाएगा जनसंख्या नियंत्रण कानून’

केंद्रीय स्वास्थ्य एवं पर‍िवार कल्‍याण मंत्री मनसुख मंडाविया ने बीते एक अप्रैल को राज्यसभा में जनसंख्या नियंत्रण कानून को लेकर बात रखी थी, उन्‍होंने कहा था कि देश में जबरन जनसंख्‍या न‍ियंत्रण कानून नहीं लाया जाएगा। उन्‍होंने कहा कि भारत की जनता इसे खुद से ही न‍ियंत्रित कर रही है और इसके ल‍िए जागरूकता अभ‍ियान भी चलाया जा रहा है।

भाजपा सांसद राकेश सिन्हा ने जुलाई 2019 में राज्यसभा में अपना जनसंख्या विनियमन विधेयक पेश किया था, इस पर बात करते हुए मंडाव‍िया ने कहा कि देश में राष्‍ट्रीय जनसंख्‍या नीति और राष्‍ट्रीय स्‍वास्‍थ्‍य नीति लागू की गई है।

राकेश सिन्हा ने स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री के हस्तक्षेप के बाद शुक्रवार को विधेयक वापस ले लिया। मंडाविया ने यहां विभिन्न परिवार नियोजन कार्यक्रमों के प्रभाव को सूचीबद्ध किया, जिसमें कुल प्रजनन दर (टीएफआर) में कमी शामिल है। उन्होंने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस)-V और जनगणना के आंकड़ों के साथ-साथ जनसंख्या वृद्धि की दर घटने के आंकड़ों का हवाला दिया, उन्‍होंने कहा कि जब हम एनएफएचएस के बारे में बात करते हैं और जनगणना को देखते हैं, तो हम उस सफलता को देख सकते हैं जो हमने हासिल की है।

बिना बल प्रयोग किए कर रही काम सरकार की नीतियां

उन्‍होंने कहा कि 1971 में औसत वार्षिक घातीय वृद्धि 2.20 थी. यह 1991 में 2.14, 2001 में 1.97 और 2011 में 1.64 हो गई। यह दर्शाता है कि जनसंख्या वृद्धि में गिरावट आई है। 60 और 80 के दशक के बीच देखी गई विकास दर में काफी कमी आई है। यह एक अच्छा संकेत है, एनएफएचएस-वी में कुल प्रजनन दर घटकर 2.0 रह गई है। मंडाविया ने किशोर जन्म दर और किशोर विवाह में क्रमशः 6.8 प्रतिशत और 23.3 प्रतिशत की गिरावट पर प्रकाश डाला।

उन्‍होंने कहा कि यह इंगित करता है कि जनसंख्या नियंत्रण पर सरकार की नीतियां बिना बल प्रयोग किए काम कर रही हैं। उन्‍होंने कहा, ‘मैं राकेश स‍िन्‍हा से अनुरोध करता हूं कि हम आपके उद्देश्यों को पूरा करने की दिशा में काम करने की कोशिश कर रहे हैं, ताकि सभी वर्गों, समुदायों को व‍िकसित होने का मौका मिले, मैं आपसे विधेयक को वापस लेने का अनुरोध करता हूं।

1901—2011 के बीच हिंदू आबादी में 13.8 प्रतिशत की कमी और मुस्लिम आबादी में 9.8 फीसदी की वृद्धि

अपने विधेयक को वापस लेते हुए, सिन्हा ने विश्वास व्यक्त किया कि इस संबंध में सरकार द्वारा किए जा रहे गंभीर प्रयासों के कारण ‘हम जाति, धर्म, भाषा और जिले से ऊपर उठकर अपनी आबादी को नियंत्रित करने में सक्षम होंगे’। ‘हमारे प्रयास संवैधानिक तरीके से किए जा रहे हैं, हम आपातकाल को दोहराना नहीं चाहते हैं’ सिन्हा ने कहा कि उन्होंने अपने विधेयक में हिंदू या मुस्लिम शब्दों का इस्तेमाल नहीं किया है, लेकिन किसी मुद्दे पर चर्चा करते समय ‘तथ्यों’ का इस्तेमाल करने में संकोच नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, पारसी शब्दों का इस्तेमाल इसे असंवैधानिक नहीं बनाता है। 1901 और 2011 के बीच हिंदू आबादी में 13.8 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि मुस्लिम आबादी में 9.8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, यह सच्‍चाई है। मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता कि यह वृद्धि अच्छी है या बुरी, लेकिन आप तथ्यों से मुंह नहीं मोड़ सकते।

कौन कर रहे इसकी मुखालफत?

Population Control Bill पर संसद में चर्चा से पहले ही विरोध होता रहा है। दारूम उलूम से लेकर एआईएमआईएम और विश्व हिंदू परिषद ने नीति पर एतराज जताते रहें हैं। राज्यों की बात करें तो उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण बिल का प्रस्ताव ला चुकी है। वहीं असम सरकार भी ऐसा ही कानून ला रही है। मध्य प्रदेश में सत्तारूढ़ दल के बीच से ही यह मांग शुरू है कि राज्य सरकार को प्रदेश में जनसंख्या वृद्धि रोकने के लिए एक सख्त कानून लाना चाहिए।

दारूल उलूम ने बताया मावाधिकारों के खिलाफ

इस्लामी शिक्षा के प्रमुख संस्थान दारुल उलूम ने उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण का कानून का विरोध किया था। दारुल उलूम की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि यह समाज के हर वर्ग के हितों को प्रभावित करेगा। दारुल उलूम के वाइस चांसलर अबुल कासिम नोमानी ने कहा कि यह नीति समाज के हर वर्ग के खिलाफ है। उन्होंने कहा ये कैसी नीति है, जिसमें लोगों को बेसिक जरूरतों के लिए भी सरकार इनकार करती है, जिनके दो से अधिक बच्चे हैं। यह मानवाधिकारों के खिलाफ हैं।

VHP ने किया विरोध

पूर्व में यूपी सरकार की ओर से लाई गई नई जनसंख्या नीति पर विश्व हिन्दू परिषद (Vishva Hindu Parishad) ने सवाल खड़े किए थे, कार्यकारी अध्यक्ष आलोक कुमार ने इस मसले पर यूपी लॉ कमिशन को चिट्ठी लिखी। वीएचपी का कहना है कि पब्लिक सर्वेंट या अन्य को एक बच्चा होने पर इंसेटिव देने की बात कही गई है। इस नियम को बदलना चाहिए।

ओवैसी ने भी जताया एतराज

AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने भी जनसंख्या नियंत्रण विधेयक’ का विरोध किया। ओवैसी ने कहा, ‘पीएम मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ने 2020 में सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए एक हलफनामे में कहा था कि ‘एक निश्चित संख्या में बच्चे पैदा करने को लेकर की गई कोई भी जबरदस्ती गलत है और यह जनसांख्यिकीय विकृतियों की ओर ले जाती है।’

औवेसी ने कहा, ‘1999-2000 के राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (National Family Health Survey) के आंकड़ों के मुताबिक, हिंदुओं में कुल प्रजनन दर (TFR) 1.2 फीसदी और मुस्लिमों में 1.66 फीसदी थी। ‘मैं बीजेपी को चुनौती देता हूं कि मुझे बताओ कि यह डेटा सच है या नहीं। अगर उन्हें लगता है कि यह सच है, तो फिर यह बिल क्यों है?’

बीजेपी ने बताया विरोध का कारण

बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा ने आरोप लगाया कि कुछ लोग निहित स्वार्थ के लिए जनसंख्या नियंत्रण कानून का विरोध कर रहे हैं। सिन्हा ने कहा कि, जनसंख्या जिहाद के कारण एक विशेष वर्ग इस प्राइवेट मेंबर बिल और इस तरह के कानून का विरोध कर रहा है। इसके साथ ही साथ जनसंख्या नियंत्रण कानून के विरोध के लिए एक मल्टीनेशनल कंपनी का ऐसा वर्ग है जो भारत से सस्ता मजदूर जाता है। सिन्हा ने जनसंख्या नियंत्रण को लेकर के उत्तर प्रदेश सरकार और असम सरकार की पहल का भी स्वागत किया और कहा कि इस को लेकर के राष्ट्रीय स्तर पर एक नीति बननी चाहिए।

Share This: