
64 elderly people live a life of trust…
चार किताबें पढ़ मेरा बेटा समझदार हो गया मुझे वृद्ध आश्रम में छोड़ बच्चा हो गया
माना वृद्धाश्रम की दर्द भरी दास्तां
रायपुर. रायपुर वृद्ध आश्रम उन बुजुर्गों के लिए घर जैसा है जिन्हें अपने परिवार का सहारा नहीं मिलता या जो स्वतंत्रता और सम्मान के साथ रहना चाहते हैं यह स्थान उन्हें रहने की जगह भोजन और स्वास्थ्य सुरक्षित माहौल तो देते हैं पर उम्मीद अब टूटी दिख रही है जहां पर अपने हम उम्र लोगों के साथ समय बिता कर अकेलापन महसूस नहीं करते परंतु बदलते सामाजिक और आर्थिक माहौल के कारण वृद्धो के लिए उनकी आवश्यकताएं बढ़ गई है जिसके लिए इन बुजुर्गों की उम्मीद टूटे जा रही है जी हां हम बात कर रहे हैं माना वृद्ध आश्रम की जहां 64 बुजुर्ग अब भरोसे की जिंदगी से थक चुके हैं बुजुर्ग कहते हैं चार किताबें पढ़कर बेटा समझदार हो गया बेटी पराई हो गई और मुझे वृद्ध आश्रम में छोड़कर बच्चा बन गया रायपुर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित माना वृद्ध आश्रम में रहने वाले बुजुर्गों से छत्तीसगढ़ वॉच की टीम ने बातचीत की और हाल-चाल जाना यह जानते ही बड़ा दुख पैदा हो गया कि बुजुर्ग की हालत में रह रहे हैं वर्ष 1964 में बांग्लादेशी शरणार्थी के तौर पर बुजुर्गों को रहने के लिए एक वृद्ध आश्रम दिया गया तब 100 की संख्या में निराश्रित शरणार्थी बुजुर्ग रहना शुरू किया था तब केंद्र की सरकार वृद्धाश्रम की देखरेख करती थी और भोजन पानी की व्यवस्था होती रही पर समय बदलने के साथ अब यह जिम्मेदारी छत्तीसगढ़ शासन के
केंद्र सरकार का पुनर्वास विभाग बुजुर्गों की देखभाल करता रहा लेकिन छत्तीसगढ़ बनने के बाद से बुजुर्गों की देखभाल छत्तीसगढ़ सरकार का पुनर्वास विभाग देखभाल करता है बुजुर्ग बताते हैं कि पिछले काफी समय से पुनर्वास विभाग की उम्मीदें बढ़ नहीं रही है हालत यह है की बुजुर्गों को टपकती छठ पर जीवन बिताना पड़ रहा है छठ ऐसी जो कभी भी गिर सकती है खतरे के साए में बुजुर्ग रात और दिन बीतने के लिए मजबूर हैं खाने के लिए दान पर अनाज तो मिल जाता है पर भरपेट नहीं मिलता आखिर यह बुजुर्ग किस अपनी व्यथा हो सकते हैं क्योंकि सुनने वाला कोई नहीं है
माना वृद्ध आश्रम में रहने वाली बुजुर्ग महिलाएं बताती हैं की वृद्ध आश्रम के पास काफी घना जंगल बन गया है यहां पर कई प्रकार के जीव जंतु आते जाते रहते हैं जीव जंतुओं से खतरा बना हुआ है महिलाओं ने बताया की वृद्ध आश्रम में 50 घर हैं जिसमें 65 महिलाएं रहती हैं इन महिलाओं में से अधिकांश महिलाओं की उम्र 70 से अधिक वर्ष की है पहले अनुदान के तौर पर महिलाओं को ढोल की राशि ₹50 मिला कर दी गई है परंतु यह राशि पर्याप्त नहीं है जर्जर हालत में घर है हर साल महिलाओं को दुर्गा पूजा पर कपड़े खरीदने के लिए ₹1500 दिए जाते रहे जो अब मिलना बंद हो चुका है ऐसे में थकहार का महिलाएं उन दानदाताओं पर निर्भर हैं जो भरोसे की जिंदगी देने के लिए महीने में कभी आ जाते हैं महिलाओं ने बताया की यहां के जीवन से तो जेल का जीवन अच्छा है जहां साफ सुथरा माहौल तो मिलता है जिस तरह की जिंदगी हम लोग जीरहे हैं बहुत नरक से भी काफी खतरनाक है महिलाओं का कहना था की दवाइयां निशुल्क दिया जाती रही लेकिन आप दवाइयां का भी पैसा लगता है और खरीदना पड़ता है
वृद्ध आश्रम में रहने वाली महिलाओं की मांग
बुजुर्ग महिलाएं कहती है कि जर्जर मकानों को सुधर जाए प्रधानमंत्री आवास योजना में बने मकानों में रखा जाए ढोल की राशि को 500 से बढ़कर 3000 कर दिया जाए ताकि गुजर बसर अच्छे से हो सके दुर्गा पूजा में मिलने वाला 1500 का भुगतान को बढ़ाकर 5000 कर दिया जाए ताकि साड़ी और मिठाई का पैसा अच्छा लग सके खाना बनाने के लिए हर महीने एक गैस सिलेंडर निशुल्क दिया जाए लकड़ी का जीवन नहीं चाहिए सड़क नाली सुलभ शौचालय की व्यवस्था अच्छी से की जाए आसपास जंगल को साफ किया जाए ताकि जीव जंतुओं से खतरा दूर हो सके
ढोल की राशि बढ़ाई जानी चाहिए
माना वृद्ध आश्रम में रहने वाली महिलाओं को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता और भारतीय जनता पार्टी के पूर्व युवा मोर्चा के अध्यक्ष तथा वर्तमान में प्रदेश अध्यक्ष राष्ट्रीय हिंदू संगठन के खोख नकुंडू कहते हैं की गरीब शरणार्थी महिलाओं को ढोल की राशि बढ़ा कर दी जानी चाहिए जो वर्तमान में ₹500 मिल रही है उसे और वृद्धि होनी चाहिए उनका कहना था कि महिलाएं काफी परेशानी की हालत में रहती है समय-समय पर शासन के स्तर पर उनके विषय में ध्यान दिलाया गया है और आने वाले समय पर भी कोशिश करते रहेंगे ताकि महिलाओं को एक सुरक्षित जीवन मिल सके