मान गे कका,,..समोसा-कचौड़ी,पिज्जा बर्गर खवया मन ल तै बोरे बासी के स्वाद चखा देस

रायपुर। आज हमर छत्तीसगढ़ म ह नहीं बल्कि देस परदेस में घलो जमके चलथ हे बोरे बासी खावो.. । काली तक केवल छत्तीसगढिय़ा मन ही जानय काये बोरे बासी लेकिन आज सबो झन जानगे। बोरे बासी के का हे फायदा तेला हमर छत्तीसगढिय़ा मुखिया ह बरोबर जानत रिहिस ही अउ मौका देख के राम बाण बरोबर छोड़ दिस,एखर बर दिन बादर घलो बने चुनिस। श्रमिक दिवस मतलब श्रम करईया असली मेहनतकश मजदूर मन के दम बोरे बासी के सेती ही अतका दिखथे। एकाध दू झन विपक्षी नेता मन बोरे बासी ल ले के उल्टा सुल्टा बोलीन त मुंह के खाइन अउ चुप्पे हो गे। अतका प्रचार प्रसार हो गे कि आनी बानी के जानकार मन पूरा परोस डरीन का हरे बोरे अउ बासी। कैसे बनथे,का संग खाथे,कामा खाथे,खाय ले का फायदा होथे ? बिहनिया ने ले के आज फोटो शेयर करईया मन के होड़ लग के हवे,कोनो घर में भुईयां में बैठ के खावथ हे थे तो कोनो डाइनिंग टेबल म। कोनो सार्वजनिक जगह में खावत हे तो कोनो होटल बासा म। खुशी के बात तो इहु हरे कि आज होटल रेस्टोरेंट ढाबा में घलो बोरे बासी खाय बर खवईयां मन मांगिन और सुघ्घर लगा के खइन घलो। का कलेक्टर का कमिश्नर, का नेता का मंत्री,का कर्मचारी का साहब,का लईका का सियान सबो खइन बोरे बासी। कोनो दही मही,अचार पापर बिजौरी संग तो कोनो मसूर के घुघरी संग तो कोनो गोंदली अउ मिरची संग। लेकिन मान ले पड़हि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ल कि अपन छत्तीसगढि़हा संस्कृति तीज त्यौहार,पहनावा ओढ़ावा ल पहिचान दिलाय के बाद अब बता दिस के छत्तीसगढिय़ा खान पान में घलो कतका ताकत हे? चाहे वो ह बोरे बासी कस न होय? जउन मन समोसा कचौड़ी,पिज्जा बर्गर, फापड़ा जलेबी,इडली दोसा खावय अउ संडे के छुट्टी मनावय तेनो मन बोरे बासी खाके डकारिन वाह क्या बात है..? गरमी के दिन में बोरे बासी हा शरीर के तासीर ल ठंडा रखथे,पाचन शक्ति ल बढ़ाथे,त्वचा ल कोमल रखथे,वजन ल संतुलित करथे,गरमी म लू नही लागय,जान ले सबो प्रकार के पोषक तत्व ऐमा हवैे। अतका अंदाजा लोगन न नइ रिहिस होही के मुख्यमंत्री के बोरे बासी अभियान ह अतका लोकप्रिय हो जही। अब देखना होटल -बासा में बोरे बासी घलो मेनू में शामिल हो जाही। लेकिन एक अउ बात बर मुख्यमंत्री ल साधुवाद दे ल पड़हि,बोरे बासी के जउन भी खूबी मान के लोगन खाही। लेकिन घर के चौका चूल्हा में रात के भात ह बाच जाए तेखर अब सम्मानपूर्वक उपयोग करे बर लोगन सोंचहि। मतलब बिहनिया के नाश्ता के जुगाड़ हो जहि। वैसे मूल छत्तीसगढिय़ा मन पहिली ले बोरे बासी खावत हे अउ ओखर खूबी ल जानत हवैे। गांव गंवई में चल दे कतको झन 80 पार मिल जहि,जे मन शहरिया जवान ल फेल कर दिहि। कुल मिला के बोरे बासी अभियान ह सफल हो गे। एखरे सेति तो कहिथे कका अभी जिंदा हे..।
(भाषा की त्रुटि को नजर अंदाज करें)